सुबह की चादर
सपनों से जाग , निंदिया को विदा कर , उज्ज्वल , श्यामल नेत्रों को खोला
चहुँ दिशा छाया उजियारा ,
नील गगन , निर्मल पवन , सुगन्धित है आँगन सारा
पंछी चहके , मुर्गा बांगे , कोयल की कूक मतवाली है
भँवरे गाते -गुनगुनाते , पुष्पों की महक निराली है
विटप के पात हैं भीगे जगमगाती ओस की बूंदों से
पाँव तले मिट्टी भी नम है गिरते पानी के गोलों से
मन आनंदित , तन आनंदित , रोम -रोम है खिल गया
हो गया चित्त प्रसन्न , देख कर हरियाली छटा
चादर फैली है प्रकाश की , अन्धकार को जीत कर आई है
प्रभात मौसम ने हृदय में , उमंग नयी जगाई है
हुआ प्रफुल्लित है कण -कण और जग ने ख़ुशी मनाई है
मन दरवाजे पर दस्तक दे , भरपूर उत्साह लायी है
ओझल होने से पहले , दिवस -सौंदर्य में खो जाओ
जीवन ये हर्षित कर लो , रंग में इसके रंग जाओ .
...नेहा अग्रवाल
Verry nice neha ji
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThanks....
ReplyDeleteexactly a poetess'feelings and thoughts
ReplyDeletesuperb
exactly a poetess'feelings and thoughts
ReplyDeletesuperb
Thanks.....
ReplyDeleteNice Ma'am
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